*ऊँ – हे अस्तित्व की परम उपज*
एक ओंकार शब्द
परम सत्य का नाम एक ही है
धर्म जीवन का स्वभाव है। ओम केवल शब्द नहीं। कीवर्ड के रूप में उसे लिखा नहीं जाता है।
भारतीय संस्कृति में ओम को अध्यात्म का मूल कहा गया है। जिसको विश्व में किसी न किसी रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
ओंकार ध्वनि ‘कार’ तक के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्त्व से सभी परिचित हैं।
ओम के तीन वर्ण अउ म ‘से अकार,’ उ ‘से उकार और’ म ‘से मकार,’ नाद ‘और’ बिंदु ‘इन पांचों को मिलाकर’ ओम ‘बन जाता है।
ओम एक वैश्विक ध्वनि। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है।संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि सूर्य से भी की ध्वनि अनवरत निकलती रहती है।
ओम का उच्चरण साउंडब्र और अनुनाद सिद्धांत के अनुसार है। ये आने वाले नकारात्मक विचारों को दूर कर, सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है।ओम की साधना करने वाले बताते हैं कि कुछ ही मिनट इसका अभ्यास करने से कई रोगों में लाभ मिलता है।
1 – इसके उच्चारण करने से मस्तिष्क रोगों में लाभ मिलता है। टेंशन डिप्रेशन आदि रोगों में इसका उच्चारण करने से विशेष लाभ मिलता है।
2 -इसके उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है।
3 -प्रा तो साय इसकी उछाल करने से एंजायटी घबराहट बेचैनी जैसे रोग दूर होते हैं।
4 -इसका चरण थायराइड जैसे रोगों में लाभ देता है।
5 -फेफड़े स्वसन तंत्र मजबूत होते हैं। छय रोग में लाभ मिलता है।
6-कर्कट हृदयरोग कोलेस्ट्रॉल जैसे रोगों में सुधार होता है।
यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है।इसका उच्चारण करने वाला है और इसे सुनने के दोनों ही लाभ के साथ होते हैं।
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