एलोपैथिक कंपनियों द्वारा अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों के विरुद्ध देश की जनता में भृम फैलाया जा रहा है : आचार्य बालकृष्ण

हरिद्वार।

देश की स्वास्थ्य व शिक्षा नीति पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद  ऋषि मुनियों की परंपरा है, जिसे हम आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे है। कहा कि सोचा नही था कि आयुर्वेद को इतनी ऊपर पहुचा पाएंगे। आज आयुर्वेद का लोहा पूरा विश्व मान रहा है। इंसान अपने को बड़ा होता है तो उसके गिरने की संभावना बन जाती है असली जड़ को पकड़ना है ज्यादा बेहतर है। पतंजलि से क्या क्या हो रहा है, वहां की गतिविधि जान सकते है। हमे लगा कि जिस कार्य को हम आनंद के रूप में ले तो वही हमारा आनंद है। अपने कार्य को आनंद पूर्वक करे, सफलता अपने आप मिलती रहेगी। संस्कृति और संस्कृत की देन है पतञ्जलि योगपीठ। उन्होंने जिनेवा के अपने संस्मरण सभी से शेयर किए। उन्होंने बताया कि संस्कृत में दिया भाषण अधिकतर लोगों ने समझा। 60 हज़ार पेड़ पौधे, लता, जड़ी, ब्यूटी है। आयुर्वेद के अलावा दुनिया मे 61 पद्धिति है जो पेड़ पौधों से जुड़ी है। जो कार्य who अधूरा छोड़ चुके था, वो सारा कार्य आज पतंजजली कर रहा है। आज सेकड़ो वैग्यानिक इस पर कार्य कर रहे है। जितनी भी सभ्यता है जितनी भी पद्धितिया है सभी पर शोध किया जा रहा है। वर्ड हर्बल के नाम से किया जा रहा है। आयुर्वेद में 1हज़ार जड़ी बूटियों का नाम है यदि कुछ अर्वाचीन ओर जोड़े जाए तो 1100 होते है। संस्कृत में करीब 15000 नाम है। हर्बल गॉर्डन में 900 से अधिक औषिधिया लगाई है। भारत मे पहला औषधि गॉर्डन है। उन्होंने पतंजलि की विशेषताएं बताई। आयुर्वेद की औषिधीया सुरक्षित है। एलोपैथिक दवायो से किडनी खराब होती है आयुर्वेदिक से सही होती है। वसंत कुसमकर रस इसका सबसे बड़ी दवाई है। आज बड़े बड़े ब्रांड डरे हुए है। उनके दंत मंजन बिक नही रहे है। इसलिए वे आयुर्वेदिक औषधियों के खिलाफ भृम पैदा करने में लगे है। इनके खिलाफ भय बनाया जा रहा है। भृम में नही रहना चाहिए।