क्या है दान : जानिये
दान क्या है? मनुष्य और अन्य प्राणियों को खुशी देना। जब आप दूसरों को खुशी देते हैं, तो बदले में आपको खुशी मिलती है। खुद की चीज़ देने के बावजूद आपको खुशी होती है, क्योंकि आपने कुछ अच्छा किया है।
किसीको शाश्वत सुख का अनुभव कब होता है? जब आप दुनिया में अपनी सबसे अधिक प्यारी चीज़ दूसरों के लिए छोड़ देंगे, तब। सांसार की वह ऐसी कौन सी चीज़ है? पैसा। लोगों को पैसों से अत्यधिक लगाव है। अतः धन को जाने दीजिए, बहा दीजिए। उसके बाद ही आपको पता चलेगा कि जितना आप जाने देंगे, उतना ही अधिक आपके पास आएगा।
जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं, दान के विषय में यह बात हम सभी जानते हैं। दान, अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना। हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं, अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। दान एक ऐसा कार्य, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं।
दान के प्रकार
१. पहले प्रकार का जो दान है वह अन्नदान। इस दान के लिए तो ऐसा कहा है कि भाई यहाँ कोई मनुष्य हमारे घर आया हो और कहे, ‘मुझे कुछ दो, मैं भूखा हूँ।’ तब कहें, ‘बैठ जा, यहाँ खाने। मैं तुझे परोसता हूँ’, वह आहारदान। तब अक्कलवाले क्या कहते हैं? इस तगड़े को अभी खिलाओगे, फिर शाम को किस तरह खिलाओगे? तब भगवान कहते हैं, ‘तू ऐसी अक्कल मत लगाना। इस व्यक्ति ने खाया तो वह आज का दिन तो जीएगा। कल फिर उसे जीने के लिए कोई और मिलेगा। फिर कल का विचार हमें नहीं करना है। आपको दूसरा झँझट नहीं करना कि कल वह क्या करेगा? वह तो कल उसे मिल जाएगा वापस। आपको इसमें चिंता नहीं करनी कि हमेशा दे पाएँगे या नहीं। आपके यहाँ आया इसलिए आप उसे दो, जो कुछ दे सको वह। आज तो जीवित रहा, बस! फिर कल उसका दूसरा कुछ उदय होगा, आपको फिकर करने की ज़रूरत नहीं।
२. औषधदान: वह आहारदान से उत्तम माना जाता है। औषधदान से क्या होता है? साधारण स्थिति का मनुष्य हो, वह बीमार पड़ा हो और अस्पताल में जाता है। और वहाँ कोई कहे कि, अरे डॉक्टर ने कहा है, पर दवाई लाने को पचास रुपये मेरे पास नहीं हैं, इसलिए दवाई किस तरह लाऊँ? तब हम कहें कि ये पचास रुपये दवाई के और दस रुपये दूसरे। या तो औषध उसे हम मुफ्त दें कहीं से लाकर। हमें पैसा खर्च करके औषध लाकर फ्री ऑफ कॉस्ट (मुफ्त) देनी। तो वह औषध ले तो बेचारा चार-छह साल जीएगा। अन्नदान की तुलना में औषधदान से अधिक फायदा है। समझ में आया आपको? किस में फायदा अधिक? अन्नदान अच्छा या औषधदान?
३. ज्ञानदान : फिर उससे आगे ज्ञानदान कहा है। ज्ञानदान में पुस्तकें छपवानी, लोगों को समझाकर सच्चे रास्ते पर ले जाएँ और लोगों का कल्याण हो, ऐसी पुस्तकें छपवानी आदि वह, ज्ञानदान। ज्ञानदान दें, तो अच्छी गतियों में, ऊँची गतियों में जाता है या फिर मोक्ष में भी जाता है।
इसलिए मुख्य वस्तु ज्ञानदान भगवान ने कहा है और जहाँ पैसों की ज़रूरत नहीं है, वहाँ अभयदान की बात कही है। जहाँ पैसों का लेन-देन है, वहाँ पर ये ज्ञानदान का कहा है और साधारण स्थिति, नरम स्थिति के लोगों को औषधदान और आहारदान, दो का कहा है।
४. अभयदान: अभयदान तो, किसी भी जीव मात्र को त्रास न हो ऐसा वर्तन रखना, वह अभयदान। किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख नहीं हो, ऐसे भाव पहले रखने और फिर वे प्रयोग में आते हैं। भाव किए हों तो प्रयोग में आते हैं। पर भाव ही नहीं किए हों तो? इसलिए इसे बड़ा दान कहा भगवान ने। उसमें पैसों की कोई ज़रूरत नहीं। ऊँचे से ऊँचा दान ही यह है, पर यह मनुष्य के बस में नहीं। लक्ष्मीवाले हों, फिर भी ऐसा कर नहीं सकते। इसलिए लक्ष्मीवालों को लक्ष्मी से (दान) पूरा कर देना चाहिए।