जरा याद करो क़ुरबानी

                                                                                                   श्रद्धांजलि 

                              (23 July 1906- 27 Feb 1931)

चिंगारी  आज़ादी  की  सुलगी  मेरे  ज़हन  में  है,

इन्क़लाब  की  ज्वालायें  लिपटी  मेरे  बदन  में  हैं,

मौत  जहाँ  जन्नत  हो  वो  बात  मेरे  वतन  में  है,

क़ुर्बानी  का  जज़्बा  ज़िंदा  मेरे  कफ़न  में  है ||

-चंद्रशेखर आज़ाद 

मां हम विदा हो जाते हैं,

हम विजय केतु फहराने आज।

तेरी बलिवेदी पर चढ़ कर

मां निज शीश कटाने आज॥

मलिन वेश ये आंसू कैसे,

कंपित होता है क्यों गात?

वीर प्रसूति क्यों रोती है,

जब लग खंग हमारे हाथ॥

धरा शीघ्र ही धसक जाएगी,

टूट जाएंगे न झुके तार।

विश्व कांपता रह जाएगा,

होगी मां जब रण हुंकार॥

नृत्य करेगी रण प्रांगण में,

फिर-फिर खंग हमारी आज।

अरि शिर गिरकर यही कहेंगे,

भारत भूमि तुम्हारी आज॥

अभी शमशीर कातिल ने,

न ली थी अपने हाथों में।

हजारों सिर पुकार उठे,

कहो दरकार कितने हैं॥

देकर जन्म धरती पर आपको शायद भगवान ने खुशी मनाई होगी
अमर हो गया वो गुरु भी जिसने आजादी की ज्योत आपके मन में जगाई होगी
इतिहास कुछ भी कहे लेकिन जानता है हर हिन्दुस्तानी बिना आजाद के आजादी हरगिज नहीं आई होगी
निर्भीक और निडरता से आपकी, अंग्रेजों की रूह भी थर्राई होगी
नाम हो जाएगा आपका इस युग में और बन जाओगे आजाद पुरुष युग-युग तक
ये बात शायद कई राजनीतिज्ञों को न पसंद आई होगी
जब फिर किसी ने मंथरा की भूमिका तो निभाई होगी
तब जाकर आपके विरुद्ध कोई एक ऐसी गंदी रणनीति बनाई होगी
तभी तो चन्द्रशेखर जैसे आजाद बलिदानी को आतंकी सुनने पर
दिल्ली को लज्जा तक नहीं आई होगी
नहीं जरूरत आपको किसी सम्मान की, न आवश्यकता है किसी पुरस्कार की
क्योंकि हर युवा के मन में आपकी छवि निश्चित ही समाई होगी
नमन करता हूं चरणों में आपके ……
होंगे जहां भी आप तो देखकर भारत की राजनीति, आपको भी हंसी तो आई होगी
आज फिर जरूरत है देश को आपकी आजाद, जानते हुए भी बलिदानी की कीमत भारत में
आपने फिर से आने की गुहार भगवान से लगाई होगी
और देखकर आपका देशप्रेम भगवान ने भी
किसी मां को अपनी कोख करने बलिदान देश के खातिर इतनी हिम्मत जुटाई होगी।