जानिए : श्रीकृष्ण ने केसे किया था कुबेर के पुत्रों को शाप मुक्त
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में किसको नहीं पता ।एक दिन नंदलाला की शैतानी को लेकर यशोदा मैया श्री कृष्ण को ऊपरी मन से सबक दे रही थी। वहीं पर खडी गोपियां इस नजारे को देखकर गोपिया बोली नन्द रानी तुम्हारा यह कानहा सदा ही हमारे घर में जाकर बर्तन फोड़ता है ।हम तो करुणा बस इसे कुछ भी नहीं कहती है । तुम्हारे दिल में जरा सी भी दर्द नहीं है।तुम तो निर्दयी हो गई हो। एक बर्तन के फूट जाने के कारण आपने इस बच्चे को छड़ी से डराया धमकाया है और बांध भी दिया है। उन गोपियों की बात को अनसुना कर नन्द रानी घर के काम धंधों में लग गईो। इसी बीच मौका पाकर श्रीकृष्ण ग्वाल बालों के साथ वह अोखली खींचते हुए श्री यमुनाजी के किनारे चले गए। यमुनाजी के तट पर दो पुराने विशाल वृक्ष जो एक दूसरे से जुड़े खड़े थे । भगवान जैसे ही उन वृक्षों के बीच से निकले उनकी वह ओखली टेढ़ी हो गई और फंस गई ।भगवान ने उसे छुड़ाने के लिए खींचा । दबाव में आकर दोनों जड़ से उखड़कर पृथ्वी पर गिर पड़े। वृक्षों के उखड़ने के बहुत धमाकैदार आवाज हुईो। उनसे दो देवता निकले । उन्होंने भगवान की। परिक्रमा करके नतमस्तक खड़े होकर इस प्रकार बोले हे भगवान आप करुणा के सागर हैं।आपकी कृपा से ही हम दोनों को इस क्षण शाप से मुक्ति मिली है ।
नारद जी ये प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि ये दोनों कुबेर के शेष्ठ पुत्र नल कूबर और मणि ग्रीव थे । एक दिननंदन वन में मंदाकिनी तट पर अपसराओं के गीतों में मग्न हो गए थे । उसी अवसर पर किसी काल में देवल नामधारी मुनीन्द्र जो वेदों के पारंगत थे, विद्वान थे उधर से निकलोे । मगर दोनों का ध्यान मुनी की तरफ नहीं गया । मुनि ने दोनों से कहा कि तुम दोनों कै स्वभाव में दुष्टता भरी है । तुम्हे अपने द्रव्यों पर घमंड है अत: भूतल पर सौ वर्षों के लिए वृक्ष हो जाओ। जब द्वापर मेंतुम श्री कृष्ण भगवान के दर्शन करोगे तब तुम्हें अपने पूर्ण स्वरूप की प्राप्ति होगी।
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