तथाकथित शंकराचार्यो को दी शास्त्रार्थ की चुनोती, जाने क्या है सच्चाई
हरिद्वार।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के लिए टिप्पणी किए जाने पर उनके शिष्य ब्रह्मचारी शहजानंद प्रभारी शाकुम्भरी पीठ ने राज राजेश्वर आश्रम महाराज व स्वामी अच्युतानंद तीर्थ को शास्त्रार्थ की चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य का पद अति सम्मानित पद है। इसे लेकर किसी भी तरह की टिप्पणी करना या स्वयंभू शंकराचार्य घोषित करना आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के महानूशासन के विपरीत है। उन्होंने कहा कि स्वामी अच्युतानंद तीर्थ से प्रश्न करते हैं। परंपरा की दुहाई देने वाले वह स्वयं को भूमा पीठाधीश्वर किस परंपरा से कहते हैं? भूमा पीठ किस परंपरा से है भूमा शब्द का अर्थ एवं उसकी शब्द निष्पत्ति क्या है? उन्होंने कहा भूमा पीठ का विशेषण भूमा नहीं हो सकता है। क्योंकि पीठ सीमित और भूमा अनंत वाचक है। यदि पीठ का अर्थ भूमानंद तीर्थ व्यक्ति है, तो वह अल्प होने के कारण भूमा हो ही नहीं सकता। उन्होंने राज राजेश्वर आश्रम को शंकराचार्य पद की तृष्णा से ग्रस्त एवं स्वयं को शारदापीठ द्वारका शंकराचार्य कहते घूम रहे हैं। और मंत्रियों के साथ अपनी फोटो खिंचवाना ही गौरव समझ रहे हैं। कहा कि मंडलेश्वर प्रकाशआनंद गिरी द्वारा एक आश्रम बनाया गया और उसका नाम जगतगुरु आश्रम रखा गया आश्रम स्वयं से जुड़ा है। वह जगतगुरु नहीं हो सकते। राज राजेश्वरआश्रम आश्रम नागा सन्यासी है जबकि प्रकाशानंद गिरी नागा नही थे, तो यह प्रकाशानंद के शिष्य भी नहीं है तो ऐसी स्थिति में राज राजेश्वर आश्रम तो प्रकाशानंद द्वारा स्थापित आश्रम के प्रभारी होने लायक भी नहीं शंकराचार्य पद तो दूर की बात है। स्वामी अच्युतानंद तीर्थ को तथाकथित बताते हुए द्वारका के स्वयंभू शंकराचार्य राजराजेश्वर आश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती भी दी है।