दुर्गा पूजा का संदेश
पांच तत्वों के तारतम्य से समस्त ब्रह्मांड और प्राणी मात्र के पिंड भी निर्मित होते हैं । तदनुसार मानव समाज भी विभिन्न पंचविद प्रकृति वाले होते हैं।
वेदादि शास्त्रों में इन पंच भेदों को आधार मानकर एक ही भगवान की पंच देवों के रूप मे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपासना बतलाई गई है । युगानुरूप उपासना भी शास्त्र सम्मत हैं।
कली काल में दुर्गा भगवती और श्री गणेश की उपासना फलदाई हैं। ‘कलौ चंडी विनायकौ”।
यूं तो सभी युगों में शक्ति का महत्व अक्षुण्ण रहा है ,परंतु इस युग में तो ‘संघे शक्ति कलौ” अर्थात संघ में ही शक्ति का आधार विद्यमान है ।
भगवती दुर्गा भी आसुरी शक्ति के विनाश के लिए समस्त देवगण की संघशक्ति से ही समृद्ध हुई थी । चंडी स्त्रोत्र में लिखा है कि “निःशेष- देवगण शक्ति समूह- मूत्यां” अर्थात सभी देवता ने जब अपनी अपनी विशिष्ट सामग्रियों का एकीकरण किया तो उससे ऐसी प्रचंड शक्ति उत्पन्न हुई थी जिससे भैसे के समान उद् दण्ड महिषासुर, चंड मुंड का, बिलाव जैसे आंखों वाले असुरों का तथा रक्त बीजों का समूल नाश कर डाला ।
आज भी धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए उसी सामूहिक बलिदान की आवश्यकता है यही दुर्गा पूजन का संदेश है।