पीपल भूत प्रेत का स्थान नहीं बोधि वृक्ष है

ऊ ध् र्व मूल मद्यः शाख मश्वत्थं प्राहुख्ययम्।
छन्दासि यस्य पर्णनि यस्तं वेदस वेदवित् ।।

अर्थात हे अर्जुन ,आदि पुरुष, परमेश्वर स्वरूप मूल वाले और ब्रह्म रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं तथा जिसके वेद पत्ते कहे जाते हैं वह संसार रूपी वृक्ष को जो पुरुषों सहित तत्व से जानता है ,वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है।

कई स्थानो मे प्राचीन से मान्यता है कि पीपल वृक्ष मे भूत प्रेत का वास होता है ।यह निराधार है,वृक्षों में श्रेष्ठ पदवी पीपल को दी गई है। पदम पुराण की एक कथा के अनुसार पीपल का वृक्ष विष्णु का रूप है। विष्णु का रूप होने के कारण इस वृक्ष को धार्मिक क्षेत्र में प्रधानता मिली हैव इसकी विधिवत पूजा भी आरंभ हुई। पीपल रूप भगवान जनार्दन को देख कर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसको देखते ही लक्ष्मी जी की कृपा होने लगती है । पदम पुराण के अनुसार पीपल को प्रणाम करने से और इसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है । इसमें सब तीर्थों का निवास भी माना गया है । इसी विश्वास के कारण हिंदू अपने मुडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाते हैं और पीपल का वृक्ष धार्मिक आस्था का स्थान बन जाता है । हालांकि इसके नियम बनाए गए हैं कि वैशाख मास में प्रतिदिन पानी दिया जाए परंतु यह वृक्ष हर स्थान पर हो जाता है और अनायास ही पल जाता है और फल जाता है । वैसे तो यह माना गया है कि जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी जल देता है वह भी करोड़ों पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग प्राप्त करता है ।
मान्यता है भगवान बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे बोध होने के कारण इसका नाम और भी प्रचलित हो गया। इसी समय के पश्चात पीपल को सामान्य भाषा में तथा संस्कृत साहित्य में भी बोधि वृक्ष नाम दिया जाने लगा । गया के उस बोधि वृक्ष की एक शाखा लंका भेजने की प्रार्थना लंका के सम्राट ने सम्राट अशोक से की थी । अशोक ने इस पवित्र वृक्ष की एक शाखा अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा के साथ भेजी थी इस शाखा को अनुराधा पुर में रोपा गया था। विश्वास किया जाता है कि यह वृक्ष संसार के प्राचीनतम में है से है । सिंहाली में पीपल को बो कहते हैं । बोधि वृक्ष का संक्षेप लंका में दो ही रह गया । यहीं से पाश्चात्य देशों में इसका नाम बो ट्री पड़ा और पुण्य होने के कारण इसे सेक्रेड फिग भी कहते हैं । पदम पुराण के अनुसार इसे रोपने से सारी मनोकामनाएं की पूर्ति होती है और इसकी एक भी शाखा काटने वाला तरुण ब्रह्म हत्या का भागी बन जाता है ।
यह अनेक प्रकार से उपयोगी है पत्ते भी काम आते हैं और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में इसका कई प्रकार से व्यवहार होता है ।
गांव में पीपल झूला झूलने आंख मिचौली और मिलन बिरहा के गीतों का माध्यम बनते हैं ।

वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो 24 घंटे आक्सीजन ही छोड़ता है इसलिए इसके पास जाने से कई रोग दूर होते हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। इसलिए यह पूजा होती है।

धार्मिक मान्यता के अलावा औषधीय गुणों से भरपूर है तथा अनेक असहाय मानी जाने वाली बीमारियों का पीपल के उपयोग से स्थायी उपचार किया जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाले पीपल वृक्ष को औषधीय गुणों का भंडार माना जाता है तथा इसके उपयोग से नपुंसकता, अस्थमा, गुर्दे, कब्ज, अतिसार तथा अनेक रक्त विकारों का सुगम घरेलू उपचार किया जा सकता है।

माना जाता है पीपल के पेड़ पर सभी देवताओं का वास होता है।अमावस्‍या के दिन पीपल की पूजा करने और दीप दिखाने से पितृ दोष का निदान होता हैं ।