बसंत पंचमी पर्व : जानिए ?

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बड़े उल्लास से मनाया जाता है. इसे माघ पंचमी भी कहते हैं. बसंत ऋतु में पेड़ों में नई-नई कोंपलें निकलनी शुरू हो जाती हैं. नाना प्रकार के मनमोहक फूलों से धरती प्राकृतिक रूप से सज जाती है. खेतों में सरसों के पीले फूल की चादर की बिछी होती है. और, कोयल की कूक से दसों दिशाएं गुंजायमान रहती है.

इस त्योहार पर सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 17 मिनट से शुरू हो जाएगा. यह मुहूर्त करीब 5 घंटे और 15 मिनट तक रहेगा यानी दोपहर 12 बजकर 32 मिनट पर देवी सरस्‍वती की आराधना का शुभ मुहूर्त समाप्त हो जाएगा. पारम्परिक रूप से यह त्यौहार कठिन शीत ऋतु के बीत के जाने और खुशनुमा मौसम आने के रूप में सेलेब्रेट करने का खास दिन है, जिससे अनके रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं.

भारत में इस तिथि को विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी. पारंपरिक रूप से यह त्‍योहार बच्चे की शिक्षा के लिए काफी शुभ माना गया है. इसलिए देश के अनेक भागों में इस दिन बच्चों की पढाई-लिखाई का श्रीगणेश किया जाता है. बच्‍चे को प्रथमाक्षर यानी पहला शब्‍द लिखना और पढ़ना सिखाया जाता है. आन्ध्र प्रदेश में इसे विद्यारम्भ पर्व कहते हैं. यहां के बासर सरस्वती मंदिर में विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं.बसंत पंचमी के दिन नवयौवनाएं और स्त्रियां पीले रंग के परिधान पहनती हैं. गांवों-कस्बों में पुरुष पीला पाग (पगड़ी) पहनते है. हिन्दू परंपरा में पीले रंग को बहुत शुभ माना जाता है. यह समृद्धि, ऊर्जा और सौम्य उष्मा का प्रतीक भी है. इस रंग को बसंती रंग भी कहा जाता है. भारत में विवाह, मुंडन आदि के निमंत्रण पत्रों और पूजा के कपड़े को पीले रंग से रंगा जाता है.

   महंत मनोज गिरी

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