बहुत देर कर दी हुजूर आते आते…जिलाधिकारी ने किया हिल बाईपास का निरिक्षण
हरिद्वार।
बाईपास का निर्माण खेल बाईपास का निर्माण हरिद्वार में 1968 के युद्ध के बाद दीर्घकालिक उपयोग के लिए किया गया था तब से अब तक अरबों रुपया इस मार्ग पर खर्च हो चुका है भला हो कुंभ मेला निधि का जिसकी बदौलत सैकड़ों करोड़ रुपिया इस मार्ग पर लगता रहा है लेकिन कारण कुछ भी गिनाते रहे हो वास्तविकता यह है कि इस मार्ग के स्थायित्व को लेकर अभी तक कोई कार्य नहीं हुआ है अलबत्ता हर कुंभ अर्धकुंभ पर इस मार्ग के मरम्मत पुनर्निर्माण पुलों की मरम्मत निर्माण के नाम पर भारी-भरकम बजट ठिकाने जरूर लगा दिया जाता है हाल ही में 2021 में होने वाले कुंभ के दृष्टिगत विगत अर्ध कुंभ के दौरान करीब 14 करोड रुपए की लागत से भीमगोड़ा बाईपास एंट्री से सीधे शहर से बाहर भूपतवाला के पास तक के लिए एक पुल का निर्माण किया गया था जो फिलहाल तक यथावत खड़ा है वही मनसा देवी हिल बाईपास मार्ग की मरम्मत और कंक्रीट की दीवार आदि के नाम पर भी भारी भरकम बजट खर्च करते हुए यह दावा किया गया था की आगामी कम से कम 20 25 वर्ष तक इस मार्ग का मेला कुंभ अर्धकुंभ आदि पर बिना खर्च किए उपयोग किया जा सकेगा। अब यह शासन प्रशासन की लापरवाही कहें या वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन का जिम्मा कि इस मार्ग के निर्माण के चंद साल बाद ही पुणे मार्ग उस स्थिति में आ गया है जिसे पूरे मार्ग का पुनर्निर्माण ही कहा जा सकता है जहां तक जाने के लिए के लिए मार्ग खुला भी है। वहां तक कई जगह ऐसी स्थिति है कि आगामी बरसात में ही पूरा मार्ग ध्वस्त हो सकता है। जबकि जिन स्थानों पर यह मार्ग पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है वहां यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यहां चंद महीनों पहले भी कोई मार्ग था। यह स्थिति केवल चंद मीटर तक नहीं है बल्कि भूरे की खोल के ऊपर से लेकर भीमगोड़ा बाईपास तक वन विभाग के गेट तक कई जगह बनी हुई है। खास बात यह भी कि जिलाधिकारी ने इस मार्ग का निरीक्षण भी किया तो उस समय जब मानसून पूरी तरह सर पर आफत के रूप में मंडरा रहा है। आगामी दिनों में यदि भारी बरसात हो जाती है तो इस मार्ग के कुंभ 2021 तक दुबारा बनाना तो बहुत दूर मरम्मत की भी कल्पना नहीं की जा सकती है। आखिर सवाल यही उठता है कि अधिकारी इतनी महत्वपूर्ण योजनाओं का समय-समय पर निरीक्षण क्यों नहीं लेते और करते याद भी आती है तो उस समय जब आफत सिर पर खड़ी हो जाती है। जाहिर है कि इसके पीछे कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती है। जो हाल वर्तमान में इस मार्ग का है। उसकी कल्पना ही की जाए तो उसके लिए कि कम से कम कुंभ तक भी इस मार्ग के इस मार्ग के निर्माण की बात पुनर्निर्माण की बात नही की जा सकती।

स्थानीय लोगों की बात करें तो उनका कहना है कि यदि इस मार्ग को समय-समय पर मेलो और स्नान के दौरान निरंतर उपयोग में लाया जाता रहे तो यदा-कदा छोटी-मोटी टूट होने पर मरम्मत कराई जा सकती है। और मार्ग का सदुपयोग हो सकता है लेकिन विभागीय के अभाव के कारण इस मार्ग पर अधिकारियों का भी आवागमन नहीं हो पाता। ऐसे में अधिकारियों को भी पता चलता है कि जब वह कुंभ व अर्ध कुंभ कांवड़ मेला के दौरान यहां का निरीक्षण करते हैं ऐसे में स्थानीय लोगों की एक कहावत के अनुसार यही कहा जा सकता है लाते रहो लगाते रहो कमाते रहो खाते रहो।