मंगल- शुभ का प्रतीक स्वास्तिक
प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की विभिन्न सभ्यताओं में स्वास्तिक चिन्ह को मंगल व शुभ का प्रतीक माना जाता रहा है ।
किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।देवपूजन ,विवाह ,व्यापार ,शिक्षा आरंभ तथा मुंडन संस्कार आदि में स्वास्तिक पूजनआवश्यक समझा जाता है ।इसे दैविक विपत्ति या नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाने वाला भी माना जाता है।
भारत की नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की विभिन्न सभ्यताओं का सर्वाधिक प्राचीन व श्रेष्ठ मांगलिक चिन्ह स्वास्तिक सूर्य का प्रतीक था तथा जीवन में स्वसि्त भाव कल्याण का सूचक था ।
स्वास्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएं होती हैं जो आगे चलकर फिर से मुड़ जाती हैंइसके बाद भी ये रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ी और मूडी होती हैं। स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम सात्विक जिनमें रेखाएं आगे की ओर इंगितकरती हुई हमारे दाई और मुडती है इसे दक्षिणावर्त स्वास्तिक कहते हैं ।यही शुभ चिन्ह है जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है दूसरी आकृति में रेखाएं पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बाई और मुडती है ।इसे वामावर्त स्वास्तिक कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है ।
हमारे मांगलिक प्रतीकों में स्वास्तिक एक ऐसा चिन्ह है जो अत्यंत प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और संप्रदायों में प्रचलित रहा है । भारत में तो इसकी जड़ें गहरी फैली हुई है । विदेशों में भी इसका काफी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है । अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुंचा । भारत के समान ही विदेशों मे भी स्वास्थ्य को शुभ और विजय का प्रतीक के माना गया।
आकाश से पृथ्वी तक व्याप्त ब्रह्मांड के चतुर्भुजी आकार का प्रतीक यह धन या जमा के चिन्ह की भांति का स्वास्तिक है । इसकी चारों भुजाएं पूर्व पश्चिम उत्तर या दक्षिण का प्रतिनिधित्व करती हैं । इस धन जिनमें पुनः चार भुजाएं जुड़ती हैं जो वस्तुतः सूर्य की दक्षिणा वृत्ति गति को प्रदर्शित करती हैं । भारतीय ज्योतिष में भी जन्म लगन से अन्य सभी गणनाएं वामा वृत्ति होती हैपरन्तु सूर्योदय व सूर्यास्त की गणना रचना वृत्ति गति से ही ज्ञात होती है ।
यह चिन्ह हिन्दू धर्म में चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं अग्नि इन्द्र वरुण व सोम की पूजाके लिए भी प्रयुक्त किया गया है।
रेड इंडियन स्वास्तिक को सुख और सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं। वे इसे अपने आभूषणों में भी धारण करते हैं । इस प्रकार हमारा मंगल प्रतीक स्वास्तिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सदैव पूज्य और सम्माननीय रहा है ।तथा इसके इस स्वरूप में हमारे यहां आज भी कोई कमी नहीं आई है ।