सात शरीर – सात चक्र सूक्ष्म शरीर के संबंध में भारतीय योगियों और दार्शनिकों की अवधारणा विज्ञान की नजर में कोई को कपोल कल्पना नहीं बल्कि एक सच्चाई है
विज्ञान आज मनुष्य के अंदर निहित जिन असीम क्षमताओं को समझने बूझने में लगा हुआ है उन्हें भारतीय योगियों चिंतकों दार्शनिकों और दिव्य पुरुषों ने बहुत पहले ही समझ बूझ लिया था ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य की मानसिक शक्ति उसी में इसी मानसिक शक्ति के माध्यम से वह ऐसे ऐसे विलक्षण कार्य कर डालता है। जिन्हें स्थूल शरीर से कदापि संभव नहीं किया जा सकता यह मानसिक शक्ति कोई पदार्थ नहीं है। जिसका उद्गम स्त्रोत व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर है।
भारतीय संस्कृति में योगियों और शाक्त तंत्र साधना साधकों ने आज की प्रज्ञा व आत्मक अनुसंधान के द्वारा मनुष्य के शरीर में सात शरीरों के अस्तित्व को स्वीकार किया है । तंत्र साधना के अनुसार यह सात शरीर मनुष्य के अंदर निहित सात चक्रों से संबंधित हैं । ये चक्र हैं – 1 स्थूल शरीर 2 -आकाश शरीर 3- सूक्ष्म शरीर 4 मानस् शरीर 5 -आत्मिक शरीर 6 -ब्रह्म शरीर 7-निर्वाण शरीर ।
यह सात शरीर मनुष्य में ऊर्जा के प्रमुख केंद्र हैं , जिन्हें कुंडलिनी साधना के माध्यम से जागृत किया जाता है । कुंडलिनी तंत्र साधना में इन सात शरीरो के सात चक्र होते हैं।
1- मूलाधार चक्र जो स्थूल शरीर की प्रवृत्तियों से संबंधित है जिसे जागृत कर व्यक्ति विषय वासना के विकारों से ऊपर उठ जाता है। यह चक्र स्थूल शरीर से संबंधित है ।
2 – स्वाधिष्ठान चक्र – यह चक्र जो आकाश शरीर से संबंधित है । इस चक्र को साधना द्वारा जागृत करने पर व्यक्ति राग द्वेष से मुक्त हो जाता है ।
3 – मणिपुर चक्र को जागृत करने पर व्यक्ति यश लिप्सा से मुक्त हो जाता है । यह चक्र सूक्ष्म शरीर से संबंध है।
4 -अनाहत चक्र के जाग्रत होने पर मनुष्य के अंदर अध्यात्मिक भाव व सात्विक गुणों का तेज उत्पन्न होता है। यह चक्र मनस् शरीर से संबंध है।
5 – विशुद्ध चक्र आत्मिक शरीर से संबंधित है । इसके जागृत होने पर व्यक्ति माया मोह के बंधन से ऊपर उठकर आत्म साक्षात्कार की ओर उन्मुख होता है।
6 – आज्ञा चक्र दोनों भौहों के मध्य में स्थित होता है जिसके जागरण पर व्यक्ति ईश्वर से साक्षात करने में समर्थ हो जाता है तथा देश काल से ऊपर उठ जाता है। यह चक्र भ्रम शरीर से संबंधित होता है ।
7 – सहस्रार चक्र यह चक्र कपाल में स्थित होता है। इसके जागृत होने पर व्यक्ति परमात्मा में एकाकार हो जाता है, जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो परमात्मा स्वरुप को प्राप्त कर लेता है । यह चक्र निर्माण शरीर से संबंध है।
महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का कहना था अंततः धर्म को विज्ञान की और व विज्ञान को धर्म की ओर लौटना होगा ऐसा लगता है कि सूक्ष्म शरीर की सत्ता स्वीकारने के बाद अभिज्ञान इसी दिशा में बढ़ रहा है विज्ञान अभी तक सूक्ष्म शरीर तक ही अपनी यात्रा कर सका है शेष शरीर का चक्र अभी उसकी पहुंच से बाहर है ।
विज्ञान की भाषा में अज्ञात का तात्पर्य से नहीं होता अज्ञात तो ज्ञात के दायरे में लाना ही विज्ञान का लक्ष्य है । फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि विज्ञान आज मनुष्य के अंदर निहित असीम क्षमताओं को समझने बूझने लगा हुआ है ।
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