संतान के लिए उत्तम फलदाई है बलराम जयंती व्रत : पंडित प्रदीप गोस्वामी

बलराम जयंती के दिन व्रत-पूजा का विधान बताया गया है, जिसका पालन सदियों से होता आया है।

बलराम के बारे में हम सभी इतना जानते हैं कि वो भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे, लेकिन पौराणिक ग्रंथों में बलराम का चित्रण केवल इतना ही नहीं है। तो आइये इस बलराम जयंती के मौके पर जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर बलराम कौन थे? क्या है उनका व्याख्यान जिससे हम अभी तक अनजान हैं। साथ ही जानें बलराम जयंती के दिन क्यों रखा जाता है व्रत और क्या है इस दिन की सही पूजा विधि?

क्यों रखते हैं बलराम जयंती का व्रत?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती का यह शुभ पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी महिला सच्चे मन से व्रत और पूजा आदि करती है इस व्रत के प्रभाव से उनकी संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही निसंतान दंपत्ति भी यदि इस दिन व्रत करते हैं तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। इसके अलावा निसंतान महिलाएं भी इस दिन संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।

इतना ही नहीं अगर किसी की संतान आये-दिन बीमार रहती है तो उन्हें भी बलराम जयंती का व्रत रखने की सलाह दी जाती है। प्राचीन समय से चली आ रही एक मान्यता है कि, जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तब पहले दिन से लेकर 6 महीने तक छठी माता ही सुक्ष्म रूप से बच्चे की देखभाल करती है। इसलिए तो बच्चे के जन्म के छठवें दिन छठी माता की पूजा भी की जाती है। आइये अब जानते हैं कि इस दिन की सही पूजन विधि क्या है।

बलराम जयंती पूजा समय/शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि शुरू : 04 बजकर 21 मिनट (9 अगस्त 2020)

षष्ठी तिथि ख़त्म : 06 बजकर 45 मिनट (10 अगस्त 2020)

बलराम जयंती पूजन विधि :
बलराम जयंती का यह पर्व श्रावण पूर्णिमा, रक्षा बंधन के ठीक छह दिनों के बाद मनाया जाता है। बलराम जयंती को ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन धरती को धारण करने वाले शेषनाग जी ने भगवान बलराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था। ऐसे में इस दिन बलराम जी की विशेष पूजा किये जाने का विधान है। चलिए जानते हैं इस दिन की जाने वाली पूजा की विधि-

किसी भी अन्य व्रत-पूजन की तरह इस दिन भी प्रातः काल उठें, और फिर नित्य कार्यों से निवृत होकर स्नान करें और फिर व्रत का संकलप लेना चाहिए।
आमतौर पर यह व्रत पुत्रवती स्त्रियाँ ही करती है।
इस दिन का व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की रक्षा और उनके मंगल स्वास्थ्य की कामना के लिए रखती हैं।
इस दिन की पूजा में बलराम जी के साथ-साथ “हल” भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन हल के द्वारा बोया हुआ अन्न, सब्जियां आदि का खाने में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इस दिन खाने में विशेषकर भैंस के दूध का प्रयोग किया जाता है। इस दिन निराहार व्रत रखने का विधान है।

पूजा में ज़रूर करें इन चीज़ों को शामिल
इसके अलावा इस दिन की पूजा में कुछ चीज़ों को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। कहा जाता है कि इससे संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है। अब जान लीजिये क्या हैं वो चीज़ें-

महुआ का पत्ता, तालाब में उगा हुआ चावल, (तिन्नी का चावल), भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ, अक्षत, लाल चंदन, मिट्टी का दीपक, भैंस के दूध से बनी दही तथा घी। इसके अलावा सात प्रकार के अनाज, धान का लाजा, हल्दी, नया वस्त्र, जनेऊ और कुश भी पूजा में प्रयोग किये जाने चाहिए।

बलराम जयंती व्रत कथा
बलराम जयंती के बारे में प्रचिलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि, जब कंस को इस बात की जानकारी मिली कि वासुदेव और देवकी की संतान ही उसकी मृत्यु की वजह बनने वाली है तो, उसने उन दोनों को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया और फिर एक-एक करके उनकी सभी छह संतानों का वध कर दिया।

इसके बाद जब देवकी सातवीं बार माँ बनने वाली थीं, तब नारद मुनि ने उन्हें हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उनकी अजन्मी संतान को कंस से बचाया जा सकता है। नारद मुनि की बात मानकर देवकी ने हलष्ठी देवी का व्रत किया।

इस व्रत के प्रभाव से भगवान ने योगमाया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। ऐसा करने से खुद कंस भी धोखा खा गया और उसे लगा कि उसनें देवकी के सातवें पुत्र को भी मार डाला है। उधर दूसरी तरफ रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। माना जाता है कि देवकी के व्रत करने से ही दोनों पुत्रों की रक्षा हुई और तभी से इस व्रत का महात्म्य माना गया है।

भगवान् की कृपा दृष्टि आप पर बनी रही आपका जीवन खुशहाल रहे इसी शुभकामनाएं के साथ।