गुरुकुल विश्वविद्यालय के संस्कृतविभाग द्वारा आयोजित संस्कृतमहोत्सव के तृतीय दिवस में विश्वश्रेयस्साधकं संस्कृतम् विषय पर हुई राष्ट्रिय शोधसंगोष्ठी
हरिद्वार, (संजय राजपूत)। गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय के संस्कृतविभाग द्वारा आयोज्यमान सप्तदिवसीय संस्कृतमहोत्सव के तृतीय दिवस में विश्वश्रेयस्साधकं संस्कृतम् विषय पर राष्ट्रिय शोधसंगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी के उद्घाटनसत्र के अध्यक्ष प्रो० वेदप्रकाश शास्त्री ने कहा कि संस्कृत सम्प्रदाय विशेष की भाषा न होकर मानवमात्र की भाषा है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पञ्जाव विश्वविद्यालय के प्रो० वीरेन्द्र अलंकार ने कहा कि संस्कृतसाहित्य के यथार्थस्वरूप को जानने के लिये संस्कृत के ग्रन्थों की यथार्थ व्याख्या अत्यन्त आवश्यक है। एम०बी०पी०जी०कालेज हल्द्वानी के संस्कृत विभाग के प्रो० विनय विद्यालंकार ने कहा कि विद्यार्थियों को संस्कारित बनाने के लिये संस्कृत भाषा के साहित्य को पढाना आवश्यक है। विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या संकाय के अध्यक्ष प्रो० ब्रह्मदेव विद्यालांकर ने कहा कि सत्साहित्य सच्चरित्र के निर्माण अत्यन्त उपादेय है। इस दृष्टि से संस्कृत का साहित्य सर्वोकृष्ट है। संगोष्ठी के समापनसत्र के अध्यक्ष प्रो० विक्रम कुमार विवेकी ने संस्कृत भाषा के सर्वभाषा जननीत्व पक्ष पर अपने विचार रखे।
इस अवसर पर मोतिहारी केन्द्रिय विश्वविद्यालय के डा० विश्वेश वाग्मी, गुजरात से डा० प्रशान्त आत्रेय, मेरठ से डा० उमा शर्मा तथा डा० सन्दीप, मुजफ्फरनगर से डा० विजयालक्ष्मी, आन्ध्रप्रदेश से डा० वरलक्ष्मी तथा विभाग के शोधछात्र गौरव तथा राधा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। विभाग के अध्यक्ष प्रो० सोमदेव शतांशु ने कार्यक्रम में समुपस्थित सभी विद्वज्जनों का स्वागत एवं धन्यवाद प्रकट किया। कार्यक्रम का संयोजन शोधच्छात्र अवधेश ने किया। इस अवसर पर प्रो० संगीता विद्यालंकार, डा० वीना विश्नोई, डा० मौहर सिंह, डा० वेदव्रत आदि उपस्थित रहे।